मंगलवार, 18 अगस्त 2015

धौलीनाग मंदिर

श्री नाग पंचमी के शुभ अवसर पर आपको लिए चलते हैं बागेश्वर जिले के विजयपुर नामक ग्राम में  स्थित श्री धौलीनाग मंदिर ।
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उत्तराखंड  की पवित्र
भूमि में आज भी ऐसे अनेक गुप्त एवं रहस्यमय देवस्थल हैं, जहां वास्तव में साक्षात देवताओं की उपस्थिति की अनुभूति होती
है। दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसे दुर्लभ देवस्थलों का राज्य के
पर्यटन मानचित्र में आज तक कोई नामो-निशान नहीें है, जबकि
इन दुर्लभ देवस्थलों पर गहन शोध की आवश्यकता थी। इन्हीं गुप्त
देवस्थलों में से ऐक देवस्थल है ‘धौली नाग’।

नागाधिराज के नाम
से जाने जाने वाले इन धौली नाग देवता को धवलनाग या
सफेदनाग के नाम से भी जाना जाता है।

धौलीनाग देवता का मन्दिर कुमाऊं मण्डल के बागेश्वर जनपद
अन्तर्गत विजयपुर नामक स्थान से मात्र डेढ़ किमी. की दूरी पर
ऊंचाई पर स्थित है। यहां के स्थानीय लोग इस नाग देवता को
अपने आराध्य देव के रूप में पूजते हैं। क्षेत्रभर के लोगों में धौलीनाग
देवता के प्रति गहरी आस्था है और विश्वास तो उनके दिलों में
जैसे कूट-कूट कर भरा है।
मंदिर के आस्थावान भक्त गोपाल धामी के अनुसार धौलीनाग
देवता के इस मन्दिर की स्थापना लगभग 400 वर्ष पूर्व की गयी
थी। उससे पहले धौलीनाग देवता यहां स्थित एक बांज के एक
विशालकाय पेड़ पर निवास करते थे, जो आज भी यहां मौजूद है।
यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि एक बार रात्रि के
समय इस क्षेत्र के जंगल में अचानक भयंकर आग लग गयी। तब बांज
के विशाल पेड़ पर विराजित धौलीनाग देवता ने ग्रामवासियों
को आवाज लगा कर बताया कि जंगल में आग लग गयी, इसे बुझाने
के लिए आओ, लेकिन कहा जाता है कि वह दिव्य आवाज
किसी को नहीं सुनाई दी। देवता के बार-बार आवाज लगाये
जाने पर सहसा वह आवाज क्षेत्र में ही निवास करने वाले
अनुसूचित जाति के ‘भूल’ लोगों ने सुनी तो वे 22 हाथ लम्बी
मशाल जलाकर रात्रि में ही आग बुझाने को निकल पड़े। देवता
के जयकारे की आवाज जब यहीं के धपोला लोगों ने सुनी तो वे
घरों से बाहर निकले और भूल लोगों से सारा वृतान्त सुनकर वे भी
जलती मशाल लेकर उनके साथ चल दिये। देखते ही देखते चन्दोला
वंशज के लोग भी मशाल हाथ में लेकर निकल पड़े और छुरमल देवता
के मंदिर में सभी एकत्र हो गये। वहां से एक साथ जंगल की आग
बुझाने निकले। मशाल लेकर चलने की परम्परा आज भी विभिन्न
मेलों के अवसर पर चली आ रही है।
साल में तीन बार यहां भव्य मेलों का आयोजन होता है, जिसमें
धपोला व भूल लोग मिलकर बाईस हाथ लम्बी जलती मशाल
लाते हैं। यह भव्य मंदिर हिमालय की तलहटी में चारों ओर बांज,
बुरांश, चीड़, काफल, देवदार आदि के वनों से आच्छादित है। इस
क्षेत्र में अनेक जाति के क्षत्रिय, ब्राह्मण एवं अनुसूचित जाति
के लोग निवास करते हैं। चन्दोला, धपोला, धामी, राणा, पन्त,
पाण्डे, काण्डपाल, कम्र्याल, भूल आदि मिलाकर लगभग डेढ़
हजार परिवार धौली नाग देवता को अपना आराध्य देव मानते
हैं। वर्ष में ऋषि पंचमी, नाग पंचमी और प्रत्येक नवरात्रि की
पंचमी की रात्रि को यहां भव्य मेले लगते हैं, जिनमें हजारों लोग
भाग लेते हैं। परम्परा के अनुसार इस मंदिर में विधि-विधान से
पूजा-अर्चना होती है। यहां के पुजारी धामी वंशज होते हैं।
वर्तमान में अमर सिंह धामी व गुमान सिंह धामी इस मंदिर में
पुजारी का दायित्व संभाले हैं।

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